अपने हृदय के इस समुन्द्र मंथन में ,
जिस शिला खंड को डाला है मैंने ,
उसे मैंने प्रेम के कच्चे धागों से बांधा है,
सत्य जो मेरा है , और झूठ जो तुम दे गए ,
यदि मै जीती तो निशचय ही अमृत पान करूगी ,
और यदि तुम जीते तो विष भी मुझे ही पीना पडेगा
जीत तो तुम ही गए ......
पर दिये हुए विष को अमृत समझ कंठ में उतरा है मैंने ।
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विनय की याद में प्रीती
1 comment:
काव्य में समर्पण भी है, स्वाभिमान भी....
मंथन ही एक विशवसनीय विश्लेषण है
रिश्तों की सच्ची गहराई को नापने का .....
कविता, भाव-पक्ष और कला-पक्ष
दोनों तरह से बहुत बढ़िया है .. . .
बधाई स्वीकारें . . . . .
---मुफलिस---
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