Thursday, June 4, 2009
गाँठ - एक नई कहानी एक नए दर्द क साथ ( कन्या भ्रूण ह्त्या पर आधारित )
निशा ने दोनों हांथो को अपने पेट पर रखा हुआ था उसके पेट पर उसके हाँथ का स्पर्श साफ़ बता रहा था की उनसे ममता फूट रही है .उसकी आँखों में पालने वाले सपने बता रहे थे की वोह माँ बनाने वाली है.तभी उसने करवट बदली और उसकी निगाह निगाह सामने लगीकृष्ण क्नैह्या की तस्वीर से उलझ गयी .होंठ बुदबुदा उठे "अबकी तुम्ही आना कान्हा . निशा ने अबतक पांच बार गर्भ धारण किया था निशा की शादी को 6 वर्ष बीत चुके थे इन ६ वर्षो में वोह ५ बार मर मर के वोह इस आस में जी यही की अबकी शायद उसे बेटा हो जाए पर भगवान् ने उसकी उर से कान शायद बंद ही कर रखे थे ,या उसे इस बात की सजा दे रहे थे की बेटे की आस में वोह गलत रस्ते अपना रही थी.पहली बेटी के जन्म के उपरांत जब भी उसने गर्भ धारण किया , पता ही कर लिया बेटा है या बेटीऔर बेटी का पता चलते ही गर्भ गिरवा दिया . बेचैन सी हो रही निशा ने फी करवट बदली छत पर चल रहे धीमी रफ़्तार के पंखे के साथ ही वोह अपनी पिछली जिंदगी में झाँक बैठी.तीन बहन एक भाई माता-पिता और दादी इतने ही सदस्य ही थे माएके में.दादी बुरी तरह से पुरानी मान्यताओं और धारणाओं की शिकार थी. उसी दिन की तो बात थी निशा छत पर कपडे फैला रही थी ,दादी की धोती को निचोड़ कर तार पर डाला ही था की आवाज़ गूँज उठी "डेढ़ सेर खाती है मेरी धोती निचोड़ने में हाँथ सुन्न पड़ जाते है क्या? मुआ पानी तो वैसे ही टपक रहा है ".जाड़े की धूप में बैठी दादी गरम गरम चाय का गिलास धोती में लपेटे आराम से सुड़क रही थी , चाय की गरमी के साथ मुख से भी अग्नि फूट रही थी.निशा की आँखों में आंसू भर गए मनो दादी की सादी का टपकता हुआ पानी उसकी आँखों से धार बनके टपकने लगा हो.तभी झनाक से गिलास फेकने की आवाज़ आयी निशा ताजी से कूदी ,अगर ना कूदती तो गरम चाय उसके पैर लील ही लेती , दादी के मुख से फिर अहनी फूट पड़ी,"अरी तीन तीन हो , जरा सी बात पर आँखों से धार तो ऐसे चलती हट मानो इस गंगा जमुना में मई डुबकी लगा कर तो मई तर ही जाऊँगी ."निशा का भी धैर्य आखिर जवाब ही दे गाया बोल ही पड़ी "दादी कभी तप दो बोल मीठे ही बोल दिया करो सारा दिन घर ही में तो खपती रहती हूँ."दादी के गुस्से में मनो मिर्च का छौंक लग गाया धुंआ निकल ही पड़ा ",घर के कामो में खपना कहती है तू, क्या सोंचती है ,तेरे नाज़ुक हाँथ ना चलेंगे तो हमारे मुंह को निवाला नही मिलेगा अभी इन बुधी हड्ड्यों में इतना दम है की तेरी जैसी पचास को मई चुटकी में किनारे कर दूं ."निशा ने दादी की साड़ी को निचोड़ना तो दूर छुआ तक नही झमक के बाल्टी उठाई और निचे उतर गयी. दादी ने अपनी साड़ी को निचोड़ने के साथ साथ अपना लाउड्स्पीकर चालू रखा . साड़ी को निचोड़ने में हाँथ ऐसे ऐंठ रही थी मानो निशा की चुटिया पकड़ कर मरोड़ रही हो.," झैउस तो देखो जिस दिन पकड़ आ गयी ऐसे ही निचोड़ कर रख दूँगी ". बिजली चली गयी थी पंखा बंद हो गाया था , निशा अपनी सोंच से बहार आयी ".पसीने में भीग चुकी थी .पलंग से उठ कर खिड़की खोली ठंडी हवा का झोंका उसके तन मन को छू गाया था .काले घने लम्बे बाल ,कजरारी आंखे गोरे मांथे पर लाल गोल बड़ी सी बिंदी मानो सुबह का सूरज वही से उगता हो .निशा सुंदर होने के साथ साथ गुणवती भी थी तभी तो प्रभात ने एक ही नज़र में निशा के जीवन में उजाला भर दिया था.जब ब्याह के आयी थी तो सभी लोगों ने उसे मांथे पर बिठाया हर काम में निपुड और बातों में दक्ष निशा ने सभी के हृदय में अपनी चावी बैठा दीथी.खिड़की के पास से पलटी और बडबडा उठी "क्या कमी थी हममे जो मान दादी का प्यार हमें नही मिला "उस दिन की घटना ने तो उसे झिंझोड कर रख दिया था रसोई में साग बिचा५र रही थी की माँ की आवाज़ गूंजी "अरे इतने दिन हो गए पर ये नही पता की साग कैसे बिचारा जाता है.भगवान् सब कुछ दे पर बेटियाँ न दी सीखा सीखा के मरूंगी मै जब सीख जाऊगी शान से जाकर अपने ससुराल में करोगी , यहाँ काम करने में तुम तीनो की जान निकलती है ." निशा के हाँथ साग बिचारते बिचारते रुक गए वो बोल पड़ी ,"बात बात पर आप तीनो बहनों को सुनाती रहती हो."इतना सुनना था की निशा की माँ मानो जलती लकड़ी पर किसी ने कपूर डाल दिया हो ऐसे धधक उठी. "ढाई तोले की ज़बान ऊपर वाले ने क्या मुह में रख दी मौका पाया और सटका दी , माँ हूँ तेरी , आकाश आ रहा होगा उसके नाश्ते का प्रबंध कर ."इसी के साथ बिचारा और बिना बिचारा साग ऐसे मिला के मींज दिया मानो निशा की जिन्धी भी उसी साग की तरह कर दी हो .निशा ने चुप चाप दो पराँठे सेंक के रख दिए .तभी छोटी बहन शुभ्रा स्कूल से लौट कर आयी और परांठे उठा कर खाने लगी निशा ने उसे स्नेह से देखा और परांठे सेंकने लगी , तभी माँ रसोई में आ गयी और शुभ्रा के हाँथ से नाश्ते की प्लेट खींच ली ," पहले आकाश को दे भूँखा है".निशा की आँखों में विद्रोह की लाल लपटे तैरने लगी उन्ही लपटों से एक ऐसा काला पुंज निकला जिसने निशा क अनायास एक ऎसी गाँठ बाँधने पर मजबूर कर दिया जिसका परिणाम वोह स्वयं भी नही जानती थी बोल उठी " अगर माँ बनाने का सौभाग्य मिला तो लड़की तो हरगिज़ नही पैदा करूंगी. " मन में लड़की ना पैदा करने की गाँठबांधे वह ससुराल आ गयी . गर्भ वती हुई तो सबने पुत्र का ही सपना पाला किसी ने कहा नारियल के फूल खिलाओ तो बेटा पैदा होगा. प्रभात ने एक नही चार - चार फूल खिलाये , चार फूल खिलाने का औचित्या समझ नही आया बेटा तो एक ही चाहोया, चार फूल खिलाने से चार बेटे तो पैदा होंगे नही .गोला बादाम से लेकर किशमिश आम की फांके किसी छीज की कामी नही . खट्टा खाने को जी करता पर खाती मीठा ही सुना जो था की मीठा खाने से बेटा ही होता है.पर आ गयी श्रेया चीख उठी थी निशा ," ऐसा हो ही नही सकता मेरे लड़की नही हो सकती, मैंने अपानेको बेटी के लिए मन से तैयार ही नही किया नही चाहिए मुझे लड़की ".सभी के पाँव टेल की धरती खिसक गायी जब निशा ने लड़की को देखने से भी इनकार कर दिया तब प्रभात बोले ",कही तुम अपने बीते हुए अतीत का बद्ला अपनी बेटी ती से तो नही ले रही . क्या दोष है इसका ? पहली बेटी है तो बेटा फिर आ जायेगा. निशा घबरा गयी उसे लगा उसकी अत्मा पर कही ना खाई उसकी दादी की अत्मा की परछाई पसर गयी है.वह घबरा उठी ", नही नही मै ऐसा हरगिज़ नही करूँगी" कहरकर अपनी बेटी को कलेजे से लगा लिया और रो पड़ी. दरवाज़े की घंटी बजी उसने उसके सोंच के तारो को तोड़ दिया प्रभात के आने का समय हो चुका था.दरवाजा खोला हमेशा की तरह मुस्कुराते परभात सामने खड़े थे . चाय बना कर लायी प्रभात बोले " कल डाक्टर के यहाँ चलना है भगवान् ने चाहा तो बेटा ही होगा ".निशा ने हूँ इस तरह से कहा मानो गूंगी हो गयी हूँ, और होती भी क्यों ना चार लड़कियों को कोख से खरोंच कर बाहर जो फिकवा चुकी थी.कहीं ना कहीं ये बात उसे खाए जा रही थी फिर भी वह मन को पत्थर कर लेटी शाम के सात बज रहे थे प्रभात बाज़ार गए हुए थे और श्रेया दादा दादी के कमरे में खेल रही थी.ना जाने क्यों आज निशा का पूरा दिन बेचैनी से गुजरा ठाकमरे में आ कर पलंग पर लेट गायी इ और किताब के पन्ने इस तरह से पलटने लगी मानो अपने ही जीवन का कोई अध्याय ढूंढ रही हो तभी आवाज़ आयी "माँ" चौंक कर उठी कही कोई भी नही था श्रेया के खेलने की आवाज़ अभी भी दादी के ही कमरे से आ रही थी.आवाज़ फिर गूंजी "माँ " निशा घबरा उठी "कौन है " उत्तर आया " मै तुम्हारा स्वरीप मुझे नही पहचाना ".निशा ने चारो तरफ नज़र दौडाई कही कोई नही था फिर भी बोल पड़ी " मेरा स्वरुप कभी ना बनना हमेशा दुत्कारी जाओगी ".इतना कह कर निशा ने आँखे बंद कर ली और सोने का प्रयास करने लगी तभी कानो में शब्द फिर गूंजे ",मै हमेशा तुम्हारे प्यार को तरसी हूँ , तुमने मुझे अपनी कोख से खुरंचवाकर बाहर गड्ढे में फिंकवा दिया , जहां मै कुत्ते बिल्लियों और चींटियों का शिकार हो रही हूँ मुझे किस बात की सज़ा दी जारही है माँ "."सज़ा तो मैंने अपने आप[ को दी ही " निशा के होंठ बडबडा उठे . आवाज़ फिर गूंजी " माँ तुम तो जन्म देने वाली हो तुम्हारी ममता में ये खून का ज़हर कैसे भर गया माँ "." चली जाओ यहाँ से "पागलो की तरह चीख उठी निशा "यहाँ सिर्फ बेटे की ही चाह में ममता का समुद्र हिलोरे मार रहा है ".इसी के साथ समुद्र का वही पानी धार बन कर फूट पडा निशा की आँखों से साथ ही निशा चीखती भी रही " चली जाओ यहाँ से "तुम कहती हो मै खूनी हो , हाँ हाँ की मैंने तुम्हारी ह्त्या उफ़ क्यो आती है ये आवाजे क्यो याद आते है मांस के वो लोथड़े".निशा जो बेटा पैदा करने के ताने बाने बुन रही थी उसी में न जाने कैसे और कब श्रेया मकडी की तरह उलझ गायी . तब से आज तक सिर्फ बेटियाँ ही मिली उसे . वोह फिर चीख पड़ी " हाँ हाँ नालियों में बहा दिया है तुम्हे , कूड़े के देर में फेंक दिया है जानवरों का निवाला बनाने के लिए." निशा बेहाल होगयी और एक बड़ी सी उल्टी फैल गायी कमरे की फर्श पर प्रभात दौड़ कर कमरे की तरफ आये हाँथ में थैला लटक रहा था फेक कर निशा को सम्हाला बार बार पूंचते रहे " निशा बताओ ना क्या बात है ?" क्या बताती की उसके अपने स्वरुप जिसे वोह चार चार बार ख़त्म कर चुकी है उसे हर पल काले सायो की तरह घेर रहे है और हत्यारिन साबित कर रहे है. लेट कर आँख बंद कर सोने इका प्रयास करने लगी , कब सोई पता ही नही चला आँख खुली तो पौ फट चुकी थी . प्रभात बात रूम से निकले " तैयार हो जाओ अस्पताल चलना है "इन शब्दों को सुनते ही सिहर सी गायी निशा क्या फिर वही प्रक्रिया अपनानी होगी आर पता चला की लड़की है तो फिर खरून्च्वा कर मॉस के लोथ्दो को बाहर फिकवाना होगा बेटी ना पैदा करने की जिस गाँठ को वो माएके से बाँध कर चली थी वोह कही न कही से ढीली पड़ रही थी. पर उसकी इस गाँठ को अपनी मुट्ठी से उसके सास ससुर पति दादा दादी सभी दाबे थे की कही खुल ना जाये . हार कर उठी और चल दी प्रभात के साथ. अस्पताल पहुँचते ही एक आवाज़ सुनाई दी " रमेश कौन हैतुम्हारी बीबी की सफाई कर दी गायी है देख लो."रमेश देखने लगा साथ ही चीखा " ये क्या है गोश्त के कीमा जैसा हटाओ -ताओ".प्रभात की निघाह भी उस पर पड़ गयी और वो सकते में आ गये .आया की आवाज़ फिर गूंजी " लड़की का पता चलते ही जब माँ की कोख की सफाई करने को कहते हो तब जी नही घबराता ,अरे कोख से खरोंच कर जब बाहर निकालेंगे तो कीमा ही बन कर बाहर आयेगी तुम्हारी बच्ची ".प्रभात पसीने से नहा गए और कुर्सी का हत्था पकड़ कर बैठ गए .आया फिर चीख उठी "अरे इसमें भी जान होती है हमारी तुम्हारी तरह माँ की कोख में बेजान नही रहती मार के ही बाहर निकलते है ".इतना सुनते सुनते प्रभात बेहोश हो चुके थे . निशा झट से पानी लायी प्रभात पर छिड़क कर होश में लेन का प्रयास करने लगीथोड़ी देर में प्रभात ने आँखे खोली और निशा का हाँथ कास कर पकड़ लिया , निशा ने अपना स्नेह भरा हाँथ प्रभात के सर पर फेरा और बोली " चलो डाक्टर इंतज़ार कर रही होंगी.प्रभात ने इतनी खाली आँखों से निशा की और देखा मानो उसके जीवन में सिर्फ शून्य ही रह गाया हो , उसने निशा का हाँथ अपने दोनों हांथो के बीच दबा लिया और बोला ",घर चलो निशा बस अब और नहीं जो भी आ रहा है वोह हमारा अपना हिस्सा है हमारा अपना प्यार .निशा को थामे प्रभात अस्पताल के गेट की ओर चल दिए उसके पीछे निशा ऐसे जा रही थी मानो गाये के पीछे उसकी बछिया. निशा ने जिस गाँठ को ६ वर्ष पूर्व बांधा था आज उसका पहला फंदा खुल चुका था निशा की आँखों में निश्चिंतता थी सबसे बड़ा फंदा खुलने की अब बाक़ी फंदे भी खुल ही जायेगे ये गाँठ अब उसके जीवन में कभी नही पड़ेगी , क्योकि प्रभात आज वास्तव में निशा के जीवन का सुप्रभात बन गए थे...........,
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