आ रही हूँ लम्बे समय के बाद फिर नयी कहानी के साथ शीघ्र
प्रीती
Saturday, August 13, 2011
Tuesday, March 30, 2010
लड़की
लड़की समाज का वोह बोझ ,
जो गर्भ में ही गिरा दिया जाता है ,
अगर आ गयी संसार में ,
तो आँखों से गिरा दिया जाता है ,
छूने की कोशिश की गर आकाश को,
तो पैरो तले की ज़मीन को खींच लिया जाता ,
मै भी एक लड़की हूँ ,
छू रही हूँ आकाश,
और दबोच ली है ज़मीन अपने पाओं तले
Wednesday, October 14, 2009
DEEPAWALI MANGAL MAYHO
सज गए है दीपों की लड़ियों के हार, कह रहा है मन फिर यह पुकार पुकार , इन्ही दीपों की भांति अपने हृदय को जगमगाओ , ताकि दूर हूँ समाज में फैला अन्धकार. प्रीति सिफ्प्सा
Thursday, June 4, 2009
गाँठ - एक नई कहानी एक नए दर्द क साथ ( कन्या भ्रूण ह्त्या पर आधारित )
निशा ने दोनों हांथो को अपने पेट पर रखा हुआ था उसके पेट पर उसके हाँथ का स्पर्श साफ़ बता रहा था की उनसे ममता फूट रही है .उसकी आँखों में पालने वाले सपने बता रहे थे की वोह माँ बनाने वाली है.तभी उसने करवट बदली और उसकी निगाह निगाह सामने लगीकृष्ण क्नैह्या की तस्वीर से उलझ गयी .होंठ बुदबुदा उठे "अबकी तुम्ही आना कान्हा . निशा ने अबतक पांच बार गर्भ धारण किया था निशा की शादी को 6 वर्ष बीत चुके थे इन ६ वर्षो में वोह ५ बार मर मर के वोह इस आस में जी यही की अबकी शायद उसे बेटा हो जाए पर भगवान् ने उसकी उर से कान शायद बंद ही कर रखे थे ,या उसे इस बात की सजा दे रहे थे की बेटे की आस में वोह गलत रस्ते अपना रही थी.पहली बेटी के जन्म के उपरांत जब भी उसने गर्भ धारण किया , पता ही कर लिया बेटा है या बेटीऔर बेटी का पता चलते ही गर्भ गिरवा दिया . बेचैन सी हो रही निशा ने फी करवट बदली छत पर चल रहे धीमी रफ़्तार के पंखे के साथ ही वोह अपनी पिछली जिंदगी में झाँक बैठी.तीन बहन एक भाई माता-पिता और दादी इतने ही सदस्य ही थे माएके में.दादी बुरी तरह से पुरानी मान्यताओं और धारणाओं की शिकार थी. उसी दिन की तो बात थी निशा छत पर कपडे फैला रही थी ,दादी की धोती को निचोड़ कर तार पर डाला ही था की आवाज़ गूँज उठी "डेढ़ सेर खाती है मेरी धोती निचोड़ने में हाँथ सुन्न पड़ जाते है क्या? मुआ पानी तो वैसे ही टपक रहा है ".जाड़े की धूप में बैठी दादी गरम गरम चाय का गिलास धोती में लपेटे आराम से सुड़क रही थी , चाय की गरमी के साथ मुख से भी अग्नि फूट रही थी.निशा की आँखों में आंसू भर गए मनो दादी की सादी का टपकता हुआ पानी उसकी आँखों से धार बनके टपकने लगा हो.तभी झनाक से गिलास फेकने की आवाज़ आयी निशा ताजी से कूदी ,अगर ना कूदती तो गरम चाय उसके पैर लील ही लेती , दादी के मुख से फिर अहनी फूट पड़ी,"अरी तीन तीन हो , जरा सी बात पर आँखों से धार तो ऐसे चलती हट मानो इस गंगा जमुना में मई डुबकी लगा कर तो मई तर ही जाऊँगी ."निशा का भी धैर्य आखिर जवाब ही दे गाया बोल ही पड़ी "दादी कभी तप दो बोल मीठे ही बोल दिया करो सारा दिन घर ही में तो खपती रहती हूँ."दादी के गुस्से में मनो मिर्च का छौंक लग गाया धुंआ निकल ही पड़ा ",घर के कामो में खपना कहती है तू, क्या सोंचती है ,तेरे नाज़ुक हाँथ ना चलेंगे तो हमारे मुंह को निवाला नही मिलेगा अभी इन बुधी हड्ड्यों में इतना दम है की तेरी जैसी पचास को मई चुटकी में किनारे कर दूं ."निशा ने दादी की साड़ी को निचोड़ना तो दूर छुआ तक नही झमक के बाल्टी उठाई और निचे उतर गयी. दादी ने अपनी साड़ी को निचोड़ने के साथ साथ अपना लाउड्स्पीकर चालू रखा . साड़ी को निचोड़ने में हाँथ ऐसे ऐंठ रही थी मानो निशा की चुटिया पकड़ कर मरोड़ रही हो.," झैउस तो देखो जिस दिन पकड़ आ गयी ऐसे ही निचोड़ कर रख दूँगी ". बिजली चली गयी थी पंखा बंद हो गाया था , निशा अपनी सोंच से बहार आयी ".पसीने में भीग चुकी थी .पलंग से उठ कर खिड़की खोली ठंडी हवा का झोंका उसके तन मन को छू गाया था .काले घने लम्बे बाल ,कजरारी आंखे गोरे मांथे पर लाल गोल बड़ी सी बिंदी मानो सुबह का सूरज वही से उगता हो .निशा सुंदर होने के साथ साथ गुणवती भी थी तभी तो प्रभात ने एक ही नज़र में निशा के जीवन में उजाला भर दिया था.जब ब्याह के आयी थी तो सभी लोगों ने उसे मांथे पर बिठाया हर काम में निपुड और बातों में दक्ष निशा ने सभी के हृदय में अपनी चावी बैठा दीथी.खिड़की के पास से पलटी और बडबडा उठी "क्या कमी थी हममे जो मान दादी का प्यार हमें नही मिला "उस दिन की घटना ने तो उसे झिंझोड कर रख दिया था रसोई में साग बिचा५र रही थी की माँ की आवाज़ गूंजी "अरे इतने दिन हो गए पर ये नही पता की साग कैसे बिचारा जाता है.भगवान् सब कुछ दे पर बेटियाँ न दी सीखा सीखा के मरूंगी मै जब सीख जाऊगी शान से जाकर अपने ससुराल में करोगी , यहाँ काम करने में तुम तीनो की जान निकलती है ." निशा के हाँथ साग बिचारते बिचारते रुक गए वो बोल पड़ी ,"बात बात पर आप तीनो बहनों को सुनाती रहती हो."इतना सुनना था की निशा की माँ मानो जलती लकड़ी पर किसी ने कपूर डाल दिया हो ऐसे धधक उठी. "ढाई तोले की ज़बान ऊपर वाले ने क्या मुह में रख दी मौका पाया और सटका दी , माँ हूँ तेरी , आकाश आ रहा होगा उसके नाश्ते का प्रबंध कर ."इसी के साथ बिचारा और बिना बिचारा साग ऐसे मिला के मींज दिया मानो निशा की जिन्धी भी उसी साग की तरह कर दी हो .निशा ने चुप चाप दो पराँठे सेंक के रख दिए .तभी छोटी बहन शुभ्रा स्कूल से लौट कर आयी और परांठे उठा कर खाने लगी निशा ने उसे स्नेह से देखा और परांठे सेंकने लगी , तभी माँ रसोई में आ गयी और शुभ्रा के हाँथ से नाश्ते की प्लेट खींच ली ," पहले आकाश को दे भूँखा है".निशा की आँखों में विद्रोह की लाल लपटे तैरने लगी उन्ही लपटों से एक ऐसा काला पुंज निकला जिसने निशा क अनायास एक ऎसी गाँठ बाँधने पर मजबूर कर दिया जिसका परिणाम वोह स्वयं भी नही जानती थी बोल उठी " अगर माँ बनाने का सौभाग्य मिला तो लड़की तो हरगिज़ नही पैदा करूंगी. " मन में लड़की ना पैदा करने की गाँठबांधे वह ससुराल आ गयी . गर्भ वती हुई तो सबने पुत्र का ही सपना पाला किसी ने कहा नारियल के फूल खिलाओ तो बेटा पैदा होगा. प्रभात ने एक नही चार - चार फूल खिलाये , चार फूल खिलाने का औचित्या समझ नही आया बेटा तो एक ही चाहोया, चार फूल खिलाने से चार बेटे तो पैदा होंगे नही .गोला बादाम से लेकर किशमिश आम की फांके किसी छीज की कामी नही . खट्टा खाने को जी करता पर खाती मीठा ही सुना जो था की मीठा खाने से बेटा ही होता है.पर आ गयी श्रेया चीख उठी थी निशा ," ऐसा हो ही नही सकता मेरे लड़की नही हो सकती, मैंने अपानेको बेटी के लिए मन से तैयार ही नही किया नही चाहिए मुझे लड़की ".सभी के पाँव टेल की धरती खिसक गायी जब निशा ने लड़की को देखने से भी इनकार कर दिया तब प्रभात बोले ",कही तुम अपने बीते हुए अतीत का बद्ला अपनी बेटी ती से तो नही ले रही . क्या दोष है इसका ? पहली बेटी है तो बेटा फिर आ जायेगा. निशा घबरा गयी उसे लगा उसकी अत्मा पर कही ना खाई उसकी दादी की अत्मा की परछाई पसर गयी है.वह घबरा उठी ", नही नही मै ऐसा हरगिज़ नही करूँगी" कहरकर अपनी बेटी को कलेजे से लगा लिया और रो पड़ी. दरवाज़े की घंटी बजी उसने उसके सोंच के तारो को तोड़ दिया प्रभात के आने का समय हो चुका था.दरवाजा खोला हमेशा की तरह मुस्कुराते परभात सामने खड़े थे . चाय बना कर लायी प्रभात बोले " कल डाक्टर के यहाँ चलना है भगवान् ने चाहा तो बेटा ही होगा ".निशा ने हूँ इस तरह से कहा मानो गूंगी हो गयी हूँ, और होती भी क्यों ना चार लड़कियों को कोख से खरोंच कर बाहर जो फिकवा चुकी थी.कहीं ना कहीं ये बात उसे खाए जा रही थी फिर भी वह मन को पत्थर कर लेटी शाम के सात बज रहे थे प्रभात बाज़ार गए हुए थे और श्रेया दादा दादी के कमरे में खेल रही थी.ना जाने क्यों आज निशा का पूरा दिन बेचैनी से गुजरा ठाकमरे में आ कर पलंग पर लेट गायी इ और किताब के पन्ने इस तरह से पलटने लगी मानो अपने ही जीवन का कोई अध्याय ढूंढ रही हो तभी आवाज़ आयी "माँ" चौंक कर उठी कही कोई भी नही था श्रेया के खेलने की आवाज़ अभी भी दादी के ही कमरे से आ रही थी.आवाज़ फिर गूंजी "माँ " निशा घबरा उठी "कौन है " उत्तर आया " मै तुम्हारा स्वरीप मुझे नही पहचाना ".निशा ने चारो तरफ नज़र दौडाई कही कोई नही था फिर भी बोल पड़ी " मेरा स्वरुप कभी ना बनना हमेशा दुत्कारी जाओगी ".इतना कह कर निशा ने आँखे बंद कर ली और सोने का प्रयास करने लगी तभी कानो में शब्द फिर गूंजे ",मै हमेशा तुम्हारे प्यार को तरसी हूँ , तुमने मुझे अपनी कोख से खुरंचवाकर बाहर गड्ढे में फिंकवा दिया , जहां मै कुत्ते बिल्लियों और चींटियों का शिकार हो रही हूँ मुझे किस बात की सज़ा दी जारही है माँ "."सज़ा तो मैंने अपने आप[ को दी ही " निशा के होंठ बडबडा उठे . आवाज़ फिर गूंजी " माँ तुम तो जन्म देने वाली हो तुम्हारी ममता में ये खून का ज़हर कैसे भर गया माँ "." चली जाओ यहाँ से "पागलो की तरह चीख उठी निशा "यहाँ सिर्फ बेटे की ही चाह में ममता का समुद्र हिलोरे मार रहा है ".इसी के साथ समुद्र का वही पानी धार बन कर फूट पडा निशा की आँखों से साथ ही निशा चीखती भी रही " चली जाओ यहाँ से "तुम कहती हो मै खूनी हो , हाँ हाँ की मैंने तुम्हारी ह्त्या उफ़ क्यो आती है ये आवाजे क्यो याद आते है मांस के वो लोथड़े".निशा जो बेटा पैदा करने के ताने बाने बुन रही थी उसी में न जाने कैसे और कब श्रेया मकडी की तरह उलझ गायी . तब से आज तक सिर्फ बेटियाँ ही मिली उसे . वोह फिर चीख पड़ी " हाँ हाँ नालियों में बहा दिया है तुम्हे , कूड़े के देर में फेंक दिया है जानवरों का निवाला बनाने के लिए." निशा बेहाल होगयी और एक बड़ी सी उल्टी फैल गायी कमरे की फर्श पर प्रभात दौड़ कर कमरे की तरफ आये हाँथ में थैला लटक रहा था फेक कर निशा को सम्हाला बार बार पूंचते रहे " निशा बताओ ना क्या बात है ?" क्या बताती की उसके अपने स्वरुप जिसे वोह चार चार बार ख़त्म कर चुकी है उसे हर पल काले सायो की तरह घेर रहे है और हत्यारिन साबित कर रहे है. लेट कर आँख बंद कर सोने इका प्रयास करने लगी , कब सोई पता ही नही चला आँख खुली तो पौ फट चुकी थी . प्रभात बात रूम से निकले " तैयार हो जाओ अस्पताल चलना है "इन शब्दों को सुनते ही सिहर सी गायी निशा क्या फिर वही प्रक्रिया अपनानी होगी आर पता चला की लड़की है तो फिर खरून्च्वा कर मॉस के लोथ्दो को बाहर फिकवाना होगा बेटी ना पैदा करने की जिस गाँठ को वो माएके से बाँध कर चली थी वोह कही न कही से ढीली पड़ रही थी. पर उसकी इस गाँठ को अपनी मुट्ठी से उसके सास ससुर पति दादा दादी सभी दाबे थे की कही खुल ना जाये . हार कर उठी और चल दी प्रभात के साथ. अस्पताल पहुँचते ही एक आवाज़ सुनाई दी " रमेश कौन हैतुम्हारी बीबी की सफाई कर दी गायी है देख लो."रमेश देखने लगा साथ ही चीखा " ये क्या है गोश्त के कीमा जैसा हटाओ -ताओ".प्रभात की निघाह भी उस पर पड़ गयी और वो सकते में आ गये .आया की आवाज़ फिर गूंजी " लड़की का पता चलते ही जब माँ की कोख की सफाई करने को कहते हो तब जी नही घबराता ,अरे कोख से खरोंच कर जब बाहर निकालेंगे तो कीमा ही बन कर बाहर आयेगी तुम्हारी बच्ची ".प्रभात पसीने से नहा गए और कुर्सी का हत्था पकड़ कर बैठ गए .आया फिर चीख उठी "अरे इसमें भी जान होती है हमारी तुम्हारी तरह माँ की कोख में बेजान नही रहती मार के ही बाहर निकलते है ".इतना सुनते सुनते प्रभात बेहोश हो चुके थे . निशा झट से पानी लायी प्रभात पर छिड़क कर होश में लेन का प्रयास करने लगीथोड़ी देर में प्रभात ने आँखे खोली और निशा का हाँथ कास कर पकड़ लिया , निशा ने अपना स्नेह भरा हाँथ प्रभात के सर पर फेरा और बोली " चलो डाक्टर इंतज़ार कर रही होंगी.प्रभात ने इतनी खाली आँखों से निशा की और देखा मानो उसके जीवन में सिर्फ शून्य ही रह गाया हो , उसने निशा का हाँथ अपने दोनों हांथो के बीच दबा लिया और बोला ",घर चलो निशा बस अब और नहीं जो भी आ रहा है वोह हमारा अपना हिस्सा है हमारा अपना प्यार .निशा को थामे प्रभात अस्पताल के गेट की ओर चल दिए उसके पीछे निशा ऐसे जा रही थी मानो गाये के पीछे उसकी बछिया. निशा ने जिस गाँठ को ६ वर्ष पूर्व बांधा था आज उसका पहला फंदा खुल चुका था निशा की आँखों में निश्चिंतता थी सबसे बड़ा फंदा खुलने की अब बाक़ी फंदे भी खुल ही जायेगे ये गाँठ अब उसके जीवन में कभी नही पड़ेगी , क्योकि प्रभात आज वास्तव में निशा के जीवन का सुप्रभात बन गए थे...........,
Wednesday, April 15, 2009
meraa kal ... yatraa vritant
आकाश की ऊँचाईयों को छूता हुआ मेरा जहाज एक अंत हीन दिशा की और उड़ता चला जा रहा थाआस पास बैठेज्यादातर सभी अपरिचित लोग या तो ऊँघ रहे थे या टी ।वि । देख रहे थे , 450 सीट वाले जहाज में हर व्यक्ति एकदूसरे से अपरचित अपने ही आप में खोये थे . कुछ वो जो अमरीका वासी थे , कुछ जो आते रहते थे , और कुछ जोपहली बार जा रहे थे , मैं इसी श्रेणी में आती हूँ . ना तो मुझे नींद आ रही थी ना ही मुझे टीवी अपनी उर आकर्षित कररहा था । निहायत उबाऊ और नीरस से वातावरण ने में उकताहट को और बढ़ा दिया था, कैसे कटेगा १४ घंटे का यहसफर सोंच सोंच कर मै अधमरी हुई जा रही थी.हार कर अपनी बगल की सीट पर बैठे एक अमरीकन की नींद मेंखलल दाल ही दिया “भाई साब आप मिनिआपोलिस जा रहे है”उसने मुझे ऐसे देखा मानो कोई बिच्छू देख लिया हो,बड़े ही रोबीले अंदाज़ में अमरीकन अंग्रजी में उसने मुझे झाड़ दिया, “यह भी कोई तरीका है बात करेने का…..हमारी कंट्री में बिना रिक्वेस्ट बिना थान्क्यू कोई बात पुरी नही होती.”घबराहट के मारे मैंने अपने होंठ सिल दिए मै हिन्दुस्तानी राह चलते से बात करेने की आदत जब चाहा किसी को बहनजी किसी को भाई साहिब बना लियाऔर खोद लिया उसके सारे खानदान को, कोई ना कोई रिश्ता किसी के चाचा ताऊ या दादा दादी से तो निकल हीआयेगा।
मन ही मन अपने आप को गरियाया, बिटिया ने बार बार फ़ोन पर बताया था ज्यादा किसी से बात कराने की जरूरत नही है. हार कर आँखों को जबर दस्ती उनके गढो में घुसेड़ा और सोने की कोशिश में लग गई .आँख खुली तोपता चला की वक्त कब का बीत चुका है मनिअपोलिस पहुच गयी हूँ। बिटिया ने यह भी समझा दिया था की ऊपर निशाँ देखती हुई चलना पता चल जायेगा की सामान कहा मिलना है..जहाज से निकली बोर्ड देखा और चल पडी,. निशाँ ऐसे की देखते ही देखते द्रुपदी की चीर की तरह बढ़ते चले जा रहेथे.तीन किलोमीटर कीपैदल यात्रा कराई फिर तीन एस्कीलेटर निचे उतारे फिर दो एस्कीलेटर ऊपर चढाया फिर एकएस्कीलेटर निचे उतारा सामने बिटिया दिखाई दी द्रौपदी की सारी सिमट ही गयी.पूँछ हीलिया “हनी तुम्हारा अमरीका मेरी समझ में नही आया जब तीन एस्कीलेटर निचे उतार हीलिया था तो दो एस्कीलेटर ऊपर चढ़ा करफिर एक एस्कीलेटर उतारने की क्या ज़रूरत थी? हमेशा कीतरह जैसे दांत दिखा कर ज़ोर से हंस पडी हनी औरबोली , “माँ तुम्हारी समझ में नही आयेगा ,घर चलो.” मै इतनी पढी लिखी होकात्र भी एकदम से अनपढ़ हो गई ,समझ में नही आया ग़लती कहा हुई………..खैर कार में बैठ कर घर को चल पडी. सुंदर पहाडी इलाका मनिआपोलिस दूर-दूर तक सिर्फ़ हरियाली बड़े बड़ेपेड़ और झुरमोट से झाकते एक ही जैसे घर, बीच से नागिन कीतरह बलखाते रास्ते , सफाई इतनी की अपना साँवला रंग भीगंदा लगने लग गया था। प्रकृति ने मानो सुन्दरता की पूरी सुराही यही पलट के रख दी हो.कोई पेड़ लाल, कोई पीला,कोईहरा,कोईजामुनी ऐसालगता धरती का ये श्रृंगार बूढे विधि ने बड़ी अत्मियाता से किया है. बड़ी उत्सुकता से मैंने बिटिया से पूछ ही लिया " " बेटा ये रंग " प्रश्न अभी पूरा भी नही हुआ था की उत्तर आ गया “माँ, ये फाल यानी पतझर का मौसम है इसे देखेनेदूर-दूर से लोग आते है बर्फ गिरने से पहले इन वृक्षो को अपने पत्ते गिराने पड़ते है और उसी से पहले येअपने को अलग अलग रंगों में बदलते है.सबसे सुंदर तो वो मेपेला है जो लाल रंग के हो जाते है.” ऐसा लग रहा था मनो येवृश्क्षा ये संदेश दे रहे हो हमें देखो हम मिटने से पहले जियेगे, फिर उगेगे और जाते जाते अपने योवन का उफानसबको दिखा कर जायेगे। घर पहुंचे सुंदर सा घर कांच से छन छन कर आती धुप, पीछे दिखने वाले जंगल और उसी के बीच फैली झीलमनोहारी दृश्य लगा , लगा की प्रक्रति से बातें कराने का मौका ज़रूर मिलेगा. “माँ” अचानक मेरा ध्यान टूटा” चायतैयार हो जाओ हम इंडियन टेम्पल चलते है, आज पापा के श्राद्ध की तिथि है ना अर्चना करेगे.मन हीमन सोंचा की कोने कोने में इंडियन टेम्पल देखने वाले को इंडियन टेम्पल देखने की बात सुननी पड़ रही है. तैयार होकर हमपरदेस में भारतीया संस्कृति का छोटा सा नमूना देखने चल दिए.बीस मील की दूरी पर था इंडियन टेम्पल सुनसानसीजगाह हां…..मन्दिर का द्वार काफी भव्य बन रहा था. बड़े से हाल में छोटे छोटे देवी देवेता अलग अलग मंदिरो मेंविराजमान जिसकी जैसी इच्छा हो वो वैसी पूजा करा ले। सोमवार का दिन था रुद्राभिषेक कराने वालो की भीड़ थी अधिक तर युवा जोड़े जो ज़्यादातर दक्षिण भारत से थे.पास में बैठे जोड़े से बात की” बेटा किस बात की पूजा करा रहे हो”? उत्तर पत्नी ने दिया “वो देस में हमारा फादर अकेला है ना उसी कीलोंगा लाइफ की पूजा देरहे है”।" कहाँ रहते हैवो”?मैंने तडाक से दूसरा प्रश्न गोली की तरह से दाग दिया… इस बार उत्तर पति ने दिया ओल्ड होम में ..मै अवाक पाँच गेलें दूध, त्रापिकानाके जूस और फल से पूजा ओल्ड होम में रहने वाले पिता के लिए की जा राही थी.” तुम उन्हें अपने साथ क्यो नही ले आते “, ना चाहते हुए भी मैंने एक प्रश्न और पूँछ ही लिया. आंटी व्हो हमारे साथ अडजस्ट नही कर पायेगा ना, और बीमार भी बहुत है यहाँ लाना प्राब्लम है.”.वहा कुछ हो जाए तो?” मै तपाक से बोली. फिरसे उत्तर पत्नी का ही आया” देखिये आंटी जाना तो सभी कोही एक दिन, हम सिर्फ़ भगवान से प्रे कर सकता है”. आरती शुरू हो गयी . आरती समाप्त कर हम घर पहुंचे, मन में छटपटाहट भी बहुत थी. रात हो चुकी थी थकान भीबहुत थी पर नींद थी की आने का नाम ही नही ले रही थी. दूसरे दिन नाती को स्कूल छोड़ कर वापस आ रही थी हनी ने कहा “ माँ कुत्तो के लिए टिक कालर बेंड ले लो तो कीडे नही लगेगे.” गाडी दूकान के सामने लगायी दूकान का नाम था पेट्स पार्लर , अन्दर घुसी तो आँखे फटने की सीमाए भी ख़तम हो गयी.कुत्तो का इतना बड़ा ब्यूटी पार्लर मैंने तो कभी नही देखा था.अचानक नज़र पडी तो देखा की मन्दिर में मिलाने वाला दक्षिण भारल का जोड़ा वहा भी मौजूद था, “अरे बेटा आप”मेरानाम शिव स्त्रोत्रम है औरये है मेरी पत्नी सुशीला कल हम आपको अपना परिचय देना भूल ही गए थे".अपने कुत्ते को सजवा रहे थे उसके बालोमें कर्लर लगवा रहे थे.” बेटा बड़ा खर्च आता होगा” उत्तर मेरी बेटी ने दिया “ माँ यहाँ कुत्ता पालना बहुत कठिन है.वोही पाल सकता है जो इसे इंसान की तरह रखे.” “ हां आंटी” शिव बोला “ सही कह रही है.” अपने कुत्तो के लिए सामान लेकर बाहर निकली तो बगल में बोर्ड लगा था पेट्स होटल समझ नही पायी आँखें प्रश्न बन कर बेटी की तरफ घूमी वो मेरा प्रश्न भाप चुकी थीफ़ौरन बोल पडी ये पालतू जानवरों का होटल है , अगर आपको कही बहार जाना है तो आप अपने कुत्ते को यहाँ कमरा बुक करा के रख कर जा सकती है. "होटल; हमारी दिल्ली के पांच सितारा होटल को मात कर रहा था . अपने अन्दर अपना हिनदुस्तान ढूँढ रही थी मौन सा चा गया पैसे से दमदमाती इस दुनिया को देख कर हनी की आवाज़ फिर सुनाई दी " यहाँ लोग कुत्ते को कुत्ता कहने से बुरा मानते है किसी से कह मत दीजियेगा तुम्हारा कुत्ता बड़ा प्यारा है ,कहियेगा तुम्हारा बेबी बड़ा प्यारा है .
दिन कैसे गुज़रे पता ही नही चला , सपनो की रुपहली दुनिया में दिन खो से गए थे गाडी का हार्न कोई सुन नही सकता है खामोशी इतनी की दिल घबराने लगे पक्षियों की बोली सुनाने के लिए कान तरसते और देखने के लिए आँखें थक जाती .ऐसा लगता प्रकृति ने उन्हें भी सीख देदी हो चुप रहने की जिस शीशे लगे दरवाज़े के सामने बैठ कर मैंने प्रकृति से बात करने के लिए सोंचा था वहाँ से मई घंटो निहारती कही से कोई पक्षी या परिदा दिख जाता तो मन मचल जाता मैंने तो बिना चिडियों की चहचहाहट के सवेरा देखा ही नही. सड़को पर दौड़ती कारे ऎसी लगती मनो खिलौनों का कोई शहर बसा हो .कही कोई ट्राफिक पोलिस नहीं कही कोई रोक पर सभी नियम से बंधे उसका पालन कर रहे है पर अगर कही जाना हो तो सवारी कई नही मिलेगी आपकी अपनी गाडी होना बहुत ज़रूरी है ना रिक्शा न तांगा न बस बैठे रहिये मुह उठाये .
दिन गुज़र गए परदेस से चलने से पहले एक बार फिर इष्ट के दर्शन की इक्षा हुई शाम को हम सब मंदिर गए न जाने कैसा संयोग की शिव और उसकी पत्नी फिर मिल गए मै भला कहा चूकने वाली थीई उसके ज़ख्मो को कुरेदने से मुझे अपने घावों पर मरहम सा लगता प्रतीत होता था पूँछ ही बैठी "बेटा आज किस बात की पूजा करा रहे हो "उधर देस में हमारा फादर एक्सपायर कर गया " आवाज़ में दुःख समेट कर शिव बोला ." तुम नही गए " मै फिर बोली." उत्तर आया " उधर हमारा अंकल सब काम ख़तम कर दिया है अब हम इधर उसकी शुधि कर रहा हूँ . मुझे लगा मेरा हृदय मेरी पसलिया तोड़ कर बहार निकल आयेगा कैसे हो जाते है यहाँ पर लोग ? कुत्ते को ब्युट्टी पार्लर ले जायेगे उसकी पोट्टी उठायेगे पर अपने पिता की शुधि के लिए गोदान करने अपने देस नही जायेगे सत्य ही ये दूरिया द्रौपदी के चीर से ज़्यादा लंबी हो गयी है क्यों की कोई भी कृष्ण इसे समेटने वाला नही है.आज मै भी यहाँ से जा रही हूँ कल किसने देखा है बड़ी बेटी तो पूरी अमरीकन बन चुकी है और छोटी तो उससे भी आगे बढ़ चुकी है मेरा कल क्या होगा पता नही ........
Wednesday, April 8, 2009
prernaa
फिर आ रही हूँ नए यात्रा वृतांत के साथ शायद कल ही . आपके अनुभवों की ज़रुरत होओगी. आप सब ही मेरी प्रेरेना है .
Monday, March 9, 2009
holi
सतरंगे फूल सतरंगे गुलाल ,
तो क्यों घोल लिया जीवन में सिर्फ रंग लाल ,
बन इन्द्र धनुष फ़ैल जाओ समस्त सृष्टि में ,\
भूल जाए सभी जीवन में सिर्फ रंग लाल.
होली मंगल मय हो . प्रीती
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